Tuesday, May 25, 2021

पतझड़ के बाद बहारें फिर से आती हैं


संघर्ष जीवन का ... 

कलीफ़ों की बौछारें तो पड़ती ही रहती हैं ;
उनसे भागकर जाये तो जाये कहा ,
तकलीफ भरे इस अँधियारे में दीपक तो जलाना ही पड़ता हैं ;

पेड़ से चिड़ियों के चले जाने से पेड़ रोने तो नहीं लगता ,
कल कभी ख़त्म नहीं होता है क्योकि वो एक नए सबेरे के साथ फिर आता हैं ; 

अगर दिल में कुछ करने की चाह हो तो ऊपर वाला राह खुद ब खुद बना देता हैं ; 
तो आओ अपनी मेहनत और लगन से उम्मीदों की फसल फिर से उगाये ,

चलो एक बार फिर से जी जाय ,
पतझड़ के बाद बहारें फिर से आती हैं ;
मुरझाई कलियाँ एक बार फिर से जरूर मुस्कुराती हैं | 

 






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