क्रोध :- क्रोध या गुस्सा होना मनुष्य का एक प्राकृतिक स्वभाव हैं | क्रोध आने पर हृदय गति और रक्तचाप बढ़ जाता है|यह भय(डर), बेचैनी और तनाव से उपजता है। क्रोध मानव के लिए हानिकारक है। क्रोध कायरता का चिह्न है। जिनमे परिस्थियों को झेलने का साहस नहीं होता उनको बहुत जल्दी क्रोध आता हैं | क्रोध जैसी नकारात्मक गतिविधी हमारे चरित्र और स्वास्थ पर बहुत हानिकारक प्रभाव डालती हैं|
नाट्य शास्त्र में क्रोध को एक ‘रस’ या नैसर्गिक भाव कहा गया है। American Physiological Association ने ‘गुस्से को विपरीत परिस्थितियों के प्रति एक सहज अभिव्यक्ति कहा गया है। इस उग्र प्रदर्शन वाले भाव से हम अपने ऊपर लगे आरोपों से अपनी रक्षा करते हैं। लिहाजा अपनी अस्तित्व रक्षा के लिए क्रोध भी जरूरी होता हैं |
क्रोध का ध्येय किसी व्यक्ति विशेष या समाज से प्रेम की अपेक्षा करना भी होता है।
क्रोध से ज्यादातर हानि ही होती है परन्तु कभी-कभी हम गुस्से में अच्छा काम कर जाते है जैसे- गुस्से में अपने किसी काम को लेना कर लेना, जिससे हम प्यार करते है उनके ऊपर भी गुस्सा होते हैं और हमारे गुस्से को प्यार समझते हुए बात को अच्छी तरह समझ जाते है | गुस्सा एक हद तक ही ठीक होता है | गुस्से में लिया गया फैसला हमेशा हानिकारक ही होता है, जब हमारा गुस्सा शांत होता है तो हमें दुःख और पछतावा होता है |
आईये मै आपको अपनी एक हाल की ही एक घटना बताती हूँ , अभी कुछ दिन पहले अपने एक फ्रेंड से बात कर रही थीं | अचानक से मुझे उसकी बातो पर क्रोध आने लगी और हुआ यूं की गुस्से में सीढ़ियों से निचे उतरते वक़्त मेरे हाथ से फ़ोन छूटकर गिर गया और टूट गया | फ़ोन से जितनी काम होती थी वो सब रूक गयी | बाद में अपने गुस्से पर दुखी और पछतावा हुआ |
जब आपके काम का श्रेय कोई और ले लेता है अथवा आपके काम पर प्रश्न उठाता है तो क्रोध के लक्षण उभरने लगते हैं। पर इससे पहले कि क्रोध हम पर हावी हो जाए हमें इसका प्रबंध करना जरूरी हो जाता है। हमें क्रोध के मूल कारण को जानने और समझने की जरूरत है|
गुस्सा एक ऐसी अवस्था है जिसमें विचार तो आतें हैं लेकिन भाव अपनी प्रधानता पर होते हैं और सामने वाला कौन है? हमारा उससे क्या सबंध है? हमें उससे कैसा व्यवहार करना चाहिए ? आदि विचार लुप्त हो जाते हैं!
वास्तविकता यह है कि जब हमें गुस्सा आता है तो हम ज्यादा दूर तक नहीं सोच पाते बल्कि उससे होने वाले परिणाम के बारे में भी नहीं सोच पाते । बस दिमाग में रहता है तो वो है गुस्सा, गुस्सा, और गुस्सा। आपका दिमाग तभी संतुलित होकर सोच सकता है जब आप आपके अन्दर किसी भाव की अधिकता न हो । आपने देखा होगा कि जब हम बहुत खुश रहते हैं तब भी हम सही से नहीं सोच पाते । जब कोई भाव हमारे ऊपर पूरी तरह से हावी होता है तो सबसे ज्यादा हमारी "सोचने की क्षमता"(Ability of thinking) प्रभावित होती है ।
क्रोध का मूल्य हमेशा बड़ा होता है :
गुस्से पर करें काबू
- गुस्से पर नियंत्रण रखने के लिए बेहतर है कि आप सकारात्मक और क्रिएटिव काम करें
- कुछ भी ऐसा करें जिससे आपका ध्यान कुछ देर के लिए बंट जाएं
- मजाक तनाव दूर करने का सबसे बेहतर तरीका है।
- समय पर खाना खाने से, कसरत करने से और पर्याप्त आराम करने से गुस्सा कम आता है
- योगा, मेडिटेशन और कांगनेटिव तकनीक भी तनाव और गुस्से को दूर करने में कारगर है
- गुस्से पर नियंत्रण रखने के लिए बेहतर है कि आप सकारात्मक और क्रिएटिव काम करें
- कुछ भी ऐसा करें जिससे आपका ध्यान कुछ देर के लिए बंट जाएं
- मजाक तनाव दूर करने का सबसे बेहतर तरीका है।
- समय पर खाना खाने से, कसरत करने से और पर्याप्त आराम करने से गुस्सा कम आता है
- योगा, मेडिटेशन और कांगनेटिव तकनीक भी तनाव और गुस्से को दूर करने में कारगर है
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